उदय प्रताप सिंह: एक परिचय


उदय प्रताप सिंह एक कवि, साहित्यकार तथा राजनेता हैं। आपका जन्म ग्राम गढिया छिनकौरा जिला मैनपुरी (उ०प्र०) में 18 मई 1932 को हुआ था। आपकी माता का नाम पुष्पा यादव तथा पिता का नाम डॉ॰ हरिहर सिंह चौधरी है। 

बचपन से ही आपको साहित्य में अभ‍िरूचि रही। हाईस्कूल में पढते समय ही आप छन्द रचने लगे। किशोरवय में आपका मार्क्सवाद की ओर रुझान हुआ। आपने अंग्रेजी एवं हिन्दी में एम.ए. किया। उसके बाद अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में लोकप्रिय हुए। आपने मदन इंटर कौलेज़, भोगाँव और नारायण इंटर कौलेज, शिकोहाबाद में 18 वर्षों तक प्राचार्य का पद सँभाला।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सम्पर्क में आने के बाद आपने 1989 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और मैनपुरी, उत्तर प्रदेश से सांसद निर्वाचित हुए। आप 1997 से 2000 तक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रहे। इसके अलावा समाजवादी पार्टी द्वारा दो बार आप राज्य सभा के सदस्य के रूप में मनोनीत हुए।

1993 में सूरीनाम में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में आपने भारतीय साहित्यकारों का नेतृत्व किया। आप अब तक लगभग 20 देशों की यात्रा कर चुके हैं। आप सांसद होते हुए भी बेहद फ़क्कड़, सहज और धरती से जुड़े हुए व्यक्ति हैं।

आप अपनी बेबाक कविता के लिये जाने जाते हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव पर आपका यह शेर श्रोता बार-बार सुनना पसन्द करते हैं:

न तेरा है न मेरा है ये हिन्दुस्तान सबका है।
नहीं समझी गयी ये बात तो नुकसान सबका है॥

इसी प्रकार सत्तासीनों द्वारा शहीदों के प्रति बरती जा रही उदासीनता पर आपका यह शेर भी बेहद चर्चित रहा है:

कभी-कभी सोचा करता हूँ वे वेचारे छले गये हैं।
जो फूलों का मौसम लाने की कोशिश में चले गये हैं॥

उदय प्रताप सिंह अपनी रचनाधर्मिता के लिए सम्पूर्ण हिन्दी जगत में जाने जाते हैं। इसके लिए आपको अनेक संस्थाएं समय-समय पर सम्मानित कर चुकी हैं, जिनमें पैरामारी बू विश्वविद्यालय सूरीनाम द्वारा आचार्य की मानद उपाधि, डॉ॰ शिवमंगल सिंह सुमन सम्मान, शायरे-यक़ज़हती सम्मान व विद्रोही स्मृति सम्मान मुख्य हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का दर्जा प्रदान किया है। दिनांक 10 सितम्बर, 2012 से आपके कुशल संचालन में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उत्तरोत्तक विकास के पथ पर अग्रसर है।